जानिए क्या है नैमिषारण्य का इतिहास

जानिए क्या है नैमिषारण्य का इतिहास



नैमिषारण्य हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। जो उत्तर प्रदेश में लखनऊ से लगभग 80 किमी दूर सीतापुर जिले में गोमती नदी के तट पर वायीं ओर स्थित है। नैमिषारण्य हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। जो उत्तर प्रदेश में लखनऊ से लगभग 80 किमी दूर सीतापुर जिले में गोमती नदी के तट पर वायीं ओर स्थित है। नैमिषारण्य सीतापुर स्टेशन से लगभग एक मील की दूरी पर चक्रतीर्थ स्थित है। यहां चक्रतीर्थ, व्यास गद्दी, मनु-सतरूपा तपोभूमि और हनुमान गढ़ी प्रमुख दर्शनीय स्थल भी हैं। यहां एक सरोवर भी है जिसका मध्य का भाग गोलाकार के रूप में बना हुआ है और उससे हमेशा निरंतर जल निकलता रहता है। अगर आप कभी सीतापुर जाते हैं तो इन स्थानों पर जरूर जाएं और अपने जीवन में इन स्थानों को यादगार अवश्य बनाएं।नैमिषारण्य तीर्थस्थल के बारे में कहा गया है कि महर्षि शौनक के मन में दीर्घकाल व्यापी ज्ञानसत्र करने की इच्छा थी। विष्णु भगवान उनकी आराधना से प्रसन्न होकर उन्हें एक चक्र दिया था और उनसे यह भी कहा कि इस चक्र को चलाते हुए चले जाओ और जिस स्थान पर इस चक्र की नेमि (परिधि) नीचे गिर जाए तो समझ लेना कि वह स्थान पवित्र हो गया है। जब महर्षि शौनक वहां से चक्र को चलाते हुए निकल पड़े और उनके साथ 88000 सहस्र ऋषि भी साथ मेंचल दिए। जब वे सब उस चक्र के पीछे-पीछे चलने लगे। चलते-चलते अचानक गोमती नदी के किनारे एक वन में चक्र की नेमि गिर गई और वहीं पर वह चक्र भूमि में प्रवेश कर गया। जिससे चक्र की नेमि गिरने से वह क्षेत्र नैमिष कहा जाने लगा। इसी कारण इस स्थान को नैमिषारण्य भी कहा जाने लगा है।




नैमिषारण्य की परिक्रमा


सीतापुर में स्थित नैमिषारण्य की परिक्रमा 84 कोस की है। यह परिक्रमा प्रतिवर्ष फाल्गुन की अमावस्या से प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक पूरी होती है। नैमिषारण्य की छोटी (अंतर्वेदी) में यहां के सभी तीर्थ उनके समक्ष आ जाते हैं।


यहां के ये हैं प्रमुख तीर्थ


पंचप्रयाग सरोवर


यह एक पक्का सरोवर है। इसके किनारे अक्षयवट नाम का एक वृक्ष हैं।


ललितादेवी मंदिर


यह इस स्थान का एक प्रसिद्ध मंदिर है। इसके साथ ही गोवर्धन महादेव, क्षेमकाया देवी, जानकी कुंड, हनुमान एवं काशी के एक पक्के सरोवर पर मंदिर है। साथ ही अन्नपूर्णा, धर्मराज मंदिर तथा विश्वनाथजी के भी मंदिर स्थित है। जहां पिण्डदान किया जाता है।



व्यास-शुकदेव के स्थान


एक मंदिर के अन्दर शुकदेव की और बाहर व्यास की गद्दी है तथा उसी के पास में मनु और शतरूपा के चबूतरे भी बने हुए हैं।


दशाश्वमेध टीला


टीले पर एक मंदिर में श्रीकृष्ण और पाण्डावों की मूर्तियां भी बनी हुई हैं।


पाण्डव किला


एक टीले पर मंदिर में श्रीकृष्ण तथा पाण्डवों की मूर्तियां भी हैं।


सूतजी का स्थान


एक मंदिर में सूतजी की गद्दी भी स्थित है। वहीं राधा-कृष्ण तथा बलरामजी की मूर्तियां भी बनी हुई हैं।


यहां स्वामी श्रीनारदनंदजी महाराज का आश्रम तथा एक ब्रह्मचर्याश्रम भी है, जहां ब्रह्मचारी प्राचीन पद्धति से शिक्षा प्राप्त करते हैं। आश्रम में साधक लोग साधना की दृष्टि से रहते हैं। धारणा है कि कलयुग में समस्त तीर्थ नैमिष क्षेत्र में ही निवास किया करते हैं।



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