'उदया' अध्ययन के नतीजों के आधार पर बनेगा खाका

बेहतर स्वास्थ्य परिणामों के लिए यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य शिक्षा जरूरी -


सीतापुर, 6 नवंबर। उचित सामाजिक वातावरण तथा सूचनाओं व सेवाओं संबंधी क्रियाओं को मजबूत करने से यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य परिणामों में सुधार लाया जा सकता है। वर्ष 2015-16 और 2018-19 में उत्तर प्रदेश के 10-19 वर्ष की आयु के 10,000 से अधिक किशोर/ किशोरियों पर किये गए अध्ययन 'उदया' के अनुसार सही उम्र में शादी करना, लड़कियों को उच्च शिक्षा दिलाना, स्कूली शिक्षा के दौरान किशोर/ किशोरियों को गर्भनिरोधक विधियों की जानकारी देना, अविवाहित और विवाहित किशोर/ किशोरियों तक फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं की पहुंच सुनिश्चित करने के साथ-साथ उनमें युवा लोगों से प्रभावी संवाद करने की क्षमता विकसित करना कुछ ऐसे उपाय हैं जिनसे किशोर/ किशोरियों के यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य में सुधार लाया जा सकता है। इसके साथ ही गर्भ निरोधक साधनों तक युवाओं की पहुँच सुनिश्चित करना तथा युवा जोड़ों और उनके परिवार के साथ युवा महिलाओं की गर्भनिरोधक जरूरतों, उनके अधिकारों और उपलब्ध विकल्पों के बारे में बातचीत करना भी ज़रूरी है। वर्ष 2015-16 से 2018-19 के दौरान किये गए 'उदया' अध्ययन से सामने आया है कि यूपी में प्रजनन स्वास्थ्य से सम्बंधित जोखिमों, गर्भनिरोधकों की जानकारी व उपयोगिया तथा उनके उपयोग को प्रभावित करने वाले कारकों में बदलाव होता रहा है। यह निष्कर्ष वर्ष 2015-16 में 10-19 वर्ष की अविवाहित किशोरियों पर आधारित हैं। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत चलाये जा रहे पीयर एजुकेटर (साथिया) कार्यक्रम के बारे में भी बहुत कम युवा जागरूक थे। केवल 2.6 प्रतिशत अविवाहित (13-17 वर्ष) किशोरियां और 1 प्रतिशत किशोरों को ही इसकी जानकारी थी। आशा कार्यकर्ता द्वारा केवल 12.5 प्रतिशत अविवाहित लड़कियों को किशोरावस्था के दौरान होने वाले शारीरिक बदलावों, 0.3 प्रतिशत को सुरक्षित यौन व्यवहार और एसटीआई/एचआईवी/एड्स तथा 3.3 प्रतिशत को गर्भनिरोधकों के बारे में जानकारी दी गई थी। इन आंकड़ों को गंभीरता से लेते हुए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अपर निदेशक डॉ. हीरालाल ने कहा कि "इस रिसर्च के जो नतीजे हैं इनमें जो भी कमियां हैं, उनको दूर करके इससे बचा जा सकता है और इससे जुड़े सभी लोगों को इस दिशा में प्रयास करने होंगे।" इनसेट --- क्या कहते हैं विशेषज्ञ --- सेंटर फॉर एक्सिलेंके की डॉ. सुजाता देब का कहना है की "आवश्यक है की प्रजनन और यौन स्वास्थ्य को किशोर–किशोरियों के साथ प्रारंभ से ही व्यावहारिक ज्ञान के रूप मे साझा किया जा सके जिससे वे न सिर्फ शारीरिक विकास की अवधारणा को समझ सके बल्कि उसके देखभाल संबंधी तकनीकी पहलू से भी परिचित हो सके।" यौन शिक्षाविद डॉ. मुस्तफा अली का कहना है कि "यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य को लेकर सरकारी योजनाआें का पूरा लाभ किशोरियों को नहीं मिल पा रहा है। इस विषय को लेकर अधिकांश जिम्मेदार गंभीर नहीं हैं। आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को चाहिए कि वह यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य को लेकर माध्यमिक कक्षाओं की छात्राआें को इस बारे में बताएं। बेहतर होगा कि इस संबंध में स्कूल स्तर पर चर्चा हो इस चर्चा में छात्राओं की माताओं को भी शामिल किया जाए और स्वास्थ्य विभाग की टीम भी हो। लेकिन इस सबके साथ ही शिक्षिकाआें को भी इस गंभीर विषय पर किशोरियों को मुखरता के साथ जानकारी देनी होगी।" पापुलेशन काउंसिल के निदेशक डॉ. निरंजन सगुरति के अनुसार 'उदया' अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि "स्कूल में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और शादी में देरी का महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य और उनके परिवार नियोजन सम्बन्धी निर्णयों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। साथ ही यह भी सामने आया है कि राष्ट्रीय किशोर स्वाथ्य कार्यक्रम जैसे सरकारी कार्यक्रमों की पहुँच तथा अधिक उम्र की अविवाहित या नव-विवाहित किशोरियों के साथ फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं का संपर्क अब भी सीमित है।" डॉ. निरंजन के अनुसार "असल में उनका पहला संपर्क विवाहित किशोरियों से सीधा प्रसव के दौरान या पहले बच्चे के जन्म के बाद होता है। इससे किशोरियों को परिवार नियोजन की उचित जानकारी नहीं मिल पाती जिससे कम उम्र में मां बनने, बार-बार गर्भधारण करने और बाल मृत्यु जैसी समस्याओं का सामना पड़ता है।"


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