राष्ट्रीय स्तर पर साहित्यि सृजन मंच बिसवाँ सीतापुर के तत्वावधान में गत दिवस एक साहित्यिक ई समारोह (सृजन-सरोकार ) का आयोजन किया गया


जिसकी अध्यक्षता लखनऊ के साहित्यकार डॉ विद्या सागर मिश्र ने की और मुख्य अतिथि विशिष्ट अतिथि के रुप में क्रमशः डॉक्टर शैलेश वीर, मनोज मधुर और संदीप मिश्र सरस (संस्थाध्यक्ष) उपस्थित रहे।


 


कार्यक्रम का सफल संचालन सुकवि रामकुमार सुरत ने किया और शिव प्रताप सिंह चौहान जी की शोभित वाणी वंदना से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ।


 


डा० विद्यासागर मिश्र ने नारियों से आग्रह किया-जागो भारत की माँ बहनो अब रौद्र रूप दिखलाओ तुम। आ गया समय निज रक्षा में दुर्गा काली बन जाओ तुम।।


 


फतेहपुर से साहित्यकार डा० शैलेश गुप्त 'वीर' ने कहा- जो समष्टि हित जीते हरदम, वे बन जाते राम। मन का रावण मार सके जो, वे कहलाते राम।। सीतापुर से मनोज मधुर ने दोहा सुनाया-साध सके जो इन्द्रियाँ नर सोई साधु जान। काम क्रोध मद लोभ सब लागे धूरि समान।।


 


वयोवृद्ध गीतकार जी० एल गाँधी जी बहुत अच्छा संदेश देते हुए कहते है- गुड सभी के, गल्तीयाँ अपनी सदा देखा करें। झुग्गियों में रहते है जो उनकी भी सोचा करें। सुकवि 'शिव प्रताप सिंह ने कहा- वीर बलिदानियों ने निज का लहू देके,माता के सुन्दर स्वरूप को संवारा था।


 


साहित्य्कार संदीप मिश्र सरस ने अपनी गजल से श्रोताओं के हृदय को छू लिया-गर्म रातो मे जिनके घर पे छत नही होती। उनको सडकों पर टहलने का हुनर आता है।


 


वयोवृद्ध हरिश्चन्द्र गुप्त अपने काव्य पाठ में संदेश देते है- राष्ट्र देव की करें साधना, इसमे सारे देव समाये। पटल प्रभारी रामकुमार सुरत ने गीत सुनाया- अगर सँभलकर नही चले तो पा जाओगे सजा़। अन्यथा मजा..तुम्हारी रजा़...।


 


युवा कवि संदीप सरल जी ने कहा- इक अपरिचित कल से अच्छा, तो सुनहरा आज है। आज पर ही कल सुनिश्चित, वक्त की आवाज है। मैगलगंज से युवा कवि शिवेन्द्र शिव कहते है-


हृदय मम प्रेम अति पावन नहीं दुर्भावना कोई।


हो ये शुचि भाव परिवर्तित नहीं संभावना कोई।


 


सतीश सौमित्र ने अपनी कविता मे संदेश दिया- बढो़ प्रबुद्ध आज तुम, चलो सपंथ आज तुम। भाव में आभास हो आत्म विश्वास पास हो।"


विनोद शर्मा सागर अपने भावों को प्रस्तुत करते है-अभी तो हमने शुरू किया है,अंगारो के साथ उछलना।"


 


लहरपुर से 'भगवती प्रसाद" जी अपने काव्य पाठ में कहते है-लगता नही है दुर्दशा के बाजुओं को देख, हम तो गुलामी के निशान मेट पाये हैं। सुकवि विजय रस्तोगी कहते है-वीरो ने हुंकार भरी, सीमा पर ललकार है। अपनी सीमा मे चीन रहो, यह ही संदेश हमारा है।


 


नवोदित कवयित्री आकांक्षा सिंह 'शिवा' कहती हैं-


पंख दिए हैं उड़ने को,उड़ जाऊं गगन के पार!


मन में कुछ शंकाएं लिए, पर आकांक्षाएं है पर!


सन्दना से दीप्ति गुप्ता जी अवधी रचना सुनाई -


हमरी अकल गई बिलाए रे विदेसवा मा। कईसन


-कईसन लोग पड़े हैं दूसर देसवा मा।


 


युवा रचनाकार धर्मेन्द्र धवल ने अपने काव्यपाठ से सभी का ध्यान खींचा- सपनों के सौदागर बनकर,मीठे ख्वाब दिखाये क्यों?मिलने की जब नियति नहीं थी,फिर जीवन में आये क्यों?


श्रृंगार के युवा कवि अवनीश अभय कहते हैं- बनारस की सुबह तुम हो अवध की शाम हो जाओ। इबादत प्यार में हो और चारों धाम हो जाओ। 


 


रचनाकार अजय विकल जी कहते हैं-वारिधि भी जमकर बरसेंगे, प्रलय प्रकृति को अंक भरेगा। संजय श्रीवास्तव 'भागीरथी' ने अपने भाव व्यक्त किये- काश मैं ऋतुराज होता तेरा जीवन महका देता। काश मैं चितेरा होता तेरी तस्वीर बनाता।


 


सामाजिक सरोकारों को समर्पित संस्था मक्खन लाल नन्ही देवी खेतान मेमोरियल समिति के संरक्षक शिवकुमार खेतान के सौजन्य से संस्था द्वारा सुकवि शिवप्रताप सिंह चौहान को सम्मानित किया गया। 


 


कार्यक्रम के अंत में सह-प्रभारी द्वय शिवेन्द्र 'शिव', संदीप 'सरल' ने द्वारा कार्यक्रम में उपस्थित सभी अभ्यागतों का आभार व्यक्त किया गया


 


इस कार्यक्रम में डॉ विद्यासागर मिश्र, डॉ शैलेश गुप्त वीर, मनोज मधुर, सन्दीप मिश्र सरस, जी एल गाँधी, डॉ सुनील सारस्वत, डॉ विमलेश विमल, शिव प्रताप सिंह चौहान, हरिश्चंद्र गुप्त, रामकुमार सुरत, मुकेश पांडेय, अवनीश अभय, शिवानन्द दीक्षित, आकांक्षा सिंह, अजय विकल, संजय भागीरथी, दीप्ति गुप्ता, भगवती प्रसाद, धर्मेन्द्र त्रिपाठी, विनोद सागर, विजय रस्तोगी,  


रामदास रतन, सतीश सौमित्र शिवेंद्र शिव, सन्दीप यादव सरल मुरारीलाल श्रीवास्तव आदि सहभागी रहे।


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