उपेक्षित है नैमिषारण्य की 'अयोध्या'

























सीतापुर : एक ओर भगवान राम के मंदिर निर्माण के लिए नैमिषारण्य की मिट्टी और तीर्थ का जल अयोध्या भेजा गया है। वहीं दूसरी ओर नैमिष का अयोध्या धाम अपने उद्धार का इंतजार कर रहा है। उपेक्षा और उदासीनता ने इस प्रचीन मंदिर की दशा बदहाल कर दी है। विकास कार्यों में घालमेल और रखरखाव का कागजी इंतजाम अयोध्या धाम की बदहाली का जिम्मेदार है। मंदिर तक आने वाला रास्ता बदहाल हो गया है।रेनकट से इंटरलॉकिग सड़क कई जगह कट गई है। बड़ी-बड़ी घास ने रास्ते के किनारे जंगल बना दिया है। यही हाल मंदिर परिसर का है। यहां बनवाया सत्संग-हाल भी बदहाल हो गया है। पंखे गायब हो चुके हैं। प्रकाश के लिए लगाए गई लाईटें भी गायब हैं। खिड़कियों के शीशे टूट गए हैं। कराए गए निर्माण का मलबा अभी तक परिसर में ही पड़ा है।


मंदिर से जुड़ी है आस्था


नैमिषारण्य स्थित अयोध्या धाम से श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी है। चौरासी कोसी परिक्रमा में शामिल होने वाले लाखों श्रद्धालु इस मंदिर पर दर्शन करने आते हैं। परिक्रमार्थी, आठवें पड़ाव जरिगवां से चलकर इस मंदिर पर पहुंचते हैं। पूजा-अर्चना के बाद नैमिषारण्य में विश्राम करते हैं। मान्यता है कि, भगवान राम ने रामादल के साथ यहीं विश्राम किया था। सिद्धेश्वर महादेव मंदिर के आचार्य विवेक द्विवेदी कहते हैं कि, नैमिषारण्य में सभी देवी-देवता व तीर्थ निवास करते हैं। गोमती के समीप एकांत में अयोध्या धाम भी स्थित है। भगवान राम, नैमिषारण्य आए थे इसका उल्लेख पुराणों में मिलता है।


सैकड़ों साल पुराना है हनुमान मंदिर





अयोध्या धाम मंदिर परिसर में बना मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना बताया जाता है। ऊंचाई पर बने इस मंदिर में बजरंगबली के अलावा अन्य देवताओं की प्रतिमाएं भी हैं। मंदिर के शिखर में कई मंदिर शिखर उभरे हुए हैं।


काम कराया और भूल गए जिम्मेदार


मंदिर परिसर में पर्यटन विभाग ने भी काम कराया है। महिला व पुरूष शौचालय के अलावा बैठने के लिए बेंच बनवाई गई हैं। शौचालय का हाल अभी से बदहाल होने लगा है। बेंचों के आसपास घास उग आई है।












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